GEOGRAPHY
SEMESTER – I
A110101T
UNIT 8
Table of Contents
इकाई –8 : – जैव मण्डल
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. जीवमण्डल की संकल्पना तथा उसके घटकों का वर्णन कीजिए।
अथवा
जीवमण्डल के संघटकों का वर्णन कीजिए।
जीवमण्डल की संकल्पना:-
भूगोल भू-तल तथा उसके निवासियों का विज्ञान है। यहाँ ‘भू-तल’ का व्यापक अर्थ में प्रयोग हुआ है। इसमें पृथ्वी के समस्त स्थल खण्डों और महासागरों के ऊपरी तल के अलावा थोड़ी गहराई तक का वह भाग भी सम्मिलित है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव धरातल पर निवास करने वाले प्राणियों तथा वनस्पति पर पड़ता है एवं भू-पृष्ठ के सम्पर्क में आने वाली वायुमण्डल की निचली परत का भाग भी इस अध्ययन में सम्मिलित है। कोल ने समस्त पृथ्वी को एक पारिस्थितिकी तन्त्र के रूप में दर्शाते हुए इस हेतु पारिस्थितिकी मण्डल शब्द का प्रयोग किया।
परिभाषा-जीवमण्डल को अनेक विद्वानों ने परिभाषित किया है-
1.“जीवमण्डल शब्द का प्रयोग पृथ्वी के उस भाग के लिए किया जाता है जो कि जीवन के विभिन्न स्वरूपों का आवास है तथा वर्गीकरण की दृष्टि से यह तीन भौतिक मण्डलों स्थलमण्डल, जलमण्डल व वायुमण्डल के अलावा है।“-डब्ल्यू. जी. मूर
2.“पृथ्वी की सतह या पर्पटी और उसके प्रमुख वैज्ञानिक वायुमण्डल जिसमें जीव पाये जाते हैं, जीवमण्डल के सदस्य हैं।“ – भूगोल परिभाषा कोश
बिकास-ज्ञात अंतरिक्ष में सम्भवतः पृथ्वी ही एक मात्र ऐसा खगोलीय पिण्ड है, जहाँ स्थल, वायु एवं जल तीनों ही मण्डल पाये जाने से जीवमण्डल का विकास सम्भव हो पाया है। पृथ्वी पर जीवमण्डल का अस्तित्व आज से लगभग 100 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ होगा, जबकि महासागरों में प्रथम स्तरीय जीवों अमीबा की उत्पत्ति हुई। तब से लेकर आज तक जल व स्थल पर जीव-जन्तुओं तथा पादपों की लाखों प्रजातियों का विकास हो चुका है। भू-गर्भ में पाये जाने वाले कोयला व खनिज तेल भण्डार भी पुरा- वनस्पति व पुरा-जीवों के ही अवशेष हैं।
विस्तार-जीवमण्डल की सीमाएँ अत्यधिक विस्तृत हैं। कई सूक्ष्म जीव तथा बीजाणु वायुमण्डल में हजारों मीटर ऊँचाई तक पहुँच जाते हैं। इसी प्रकार कई सूक्ष्म जीव भू-गर्भ में सैकड़ों मीटर गहराई पर भी देखे गये हैं।
जीवमंडल के घटक:-
सामान्यतः जीवमण्डल से अभिप्राय प्राणी एवं वनस्पति जगत एवं उसके आवास से लिया जाता है, किन्तु जीवमण्डल के संघटन में भौतिक पर्यावरण के सभी तत्वों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। पृथ्वी के जीव-जगत तथा पर्यावरण के मध्य पारस्परिक क्रिया-प्रतिक्रिया होती है। इसके अन्तर्गत समस्त जीवधारी तथा भौतिक पर्यावरण दोनों ही आते हैं। भौतिक पर्यावरण में जल, वायु, स्थल तथा सजीव सम्मिलित हैं।
सभी प्रकार के सजीवों की उत्पत्ति, विकास, आवास तथा उनके जीवन-चक्र को प्रभावित करने वाले विभिन्न तत्त्व ही जीवमण्डल के घटक कहलाते हैं। जीवमण्डल के प्रमुख घटक निम्न हैं-
(1) वायुमंडल, (2) जलमंडल, (3) स्थलमंडल, (4) सजीव या जीव जगत।
वायुमण्डल:-
पृथ्वी की सतह के निकट वायु सघन होती है, ज्यों-ज्यों ऊपर जाते हैं, वायु विरल होती जाती है। इसलिए धरातल से 5 किमी तक की ऊँचाई वाले भाग में ही वायुमण्डल की कुल वायु राशि का 50 प्रतिशत (भार या मात्रा) भाग पाया जाता है।
वायुमण्डलीय संघटन में विभिन्न गैसों के साथ-साथ जल वाष्प तथा धूल कणों का योगदान भी रहता है। वायुमण्डल अनेक गैसों का सम्मिश्रण है जिसमें विभिन्न गैसें एक निश्चित अनुपात में पायी जाती हैं। इनमें नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, आर्गन, कार्बन डाई-ऑक्साइड एवं हाइड्रोजन की मात्रा 99.99 प्रतिशत होती है। सामान्यतः भारी गैसें वायुमण्डल के निचले स्तरों में तथा हल्की गैसें ऊपरी स्तरों में मिलती हैं, जैसे-कार्बन डाई ऑक्साइड 20 किमी तक तथा ऑक्सीजन व नाइट्रोजन 100 किमी की ऊँचाई तक मिलती हैं। इसके पश्चात् अधिक ऊँचाई में हाइड्रोजन, हीलियम, क्रिप्टोन, नियोन, ओजोन आदि हल्की गैसें पायी जाती हैं। वायुमण्डल की निचली परत में जल वाष्प व धूल कण भी पाये जाते हैं, जिनके कारण वायु विक्षोभ एवं संघनन की क्रिया प्रभावी होती है।
जलमण्डल:-
जलमण्डल में समस्त महासागर, आन्तरिक एवं सीमान्त सागर, झीलें, खाड़ियाँ आदि सम्मिलित हैं। पृथ्वी के स्थल भाग पर पाये जाने वाले समस्त जल स्रोतों नदी, तालाब, झील, झरने, कुएं आदि का आधार महासागर ही है। सभी रूपों में जल की आपूर्ति वहीं से जल चक्र द्वारा होती है। धरातल पर तापमान के सन्तुलन को बनाये रखने में भी महासागरों का बड़ा योगदान है। पृथ्वी पर जल तथा स्थल का वितरण अत्यधिक असमान है। दक्षिणी गोलार्द्ध में 81 प्रतिशत तथा उत्तरी गोलार्द्ध में 40 प्रतिशत जल है। दक्षिणी गोलार्द्ध में जल की प्रधानता के कारण इसे जलीय गोलार्द्ध भी कहते हैं।
स्थलमण्डल:-
भू-पर्पटी (crust) का कठोर भाग जो पृथ्वी की सतह से लगभग 65 किमी नीचे तक फैला हुआ है, स्थलमण्डल कहलाता है। भूमण्डल पर यह एक ऐसी परत के रूप में है जिसमें मुख्यतः सियाल एवं कहीं-कहीं ऊपरी मेण्टल या ऊपरी सीमा परत शामिल हैं। इस परत की ऊपरी सतह पर अवसादों का एक आवरण पाया जाता है। स्थलमण्डल में भूमि के शुष्क भागों के अतिरिक्त सागरीय तली वाले भाग भी सम्मिलित हैं।
सजीव या जीव-जगत (जीवमंडल):-
जीवमण्डल में उपस्थित सजीवों में मानव, जन्तु, वनस्पति तथा सूक्ष्म जीव सम्मिलित हैं। स्थलमण्डल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल तीनों में ही विभिन्न जीवों की उपस्थिति पायी जाती है। सभी जीवधारी भौतिक पर्यावरण की उपज हैं। सजीवों तथा पर्यावरण के मध्य पारस्परिक क्रिया-प्रतिक्रिया होती रहती है। समस्त जैविक तत्त्व परस्पर सह-सम्बन्धित हैं, जैसे-मानव अपना भोजन पादपों व जन्तुओं से प्राप्त करता है, जन्तु अन्य प्राणियों या वनस्पति पर निर्भर होते हैं तथा पादप मृदा की उपज है। जन्तुओं के उत्सर्जित पदार्थ, मृत जन्तुओं व पादपों के अंश तथा सूक्ष्मजीवी बैक्टीरिया मृदा की उर्वरता बढ़ाते हैं। पादप अपने परागण के लिए कीट-पतंगों पर निर्भर होते हैं। किसी स्थान पर उगने वाले पादप एक-दूसरे पर भी प्रभाव डालते हैं। इसी प्रकार जन्तु भी एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. जीवमण्डल की संकल्पना बताइए।
उत्तर-भूगोल भू-तल तथा उसके निवासियों का विज्ञान है। यहाँ ‘भू-तल’ का व्यापक अर्थ में प्रयोग हुआ है। इसमें पृथ्वी के समस्त स्थल खण्डों और महासागरों के ऊपरी तल के अलावा थोड़ी गहराई तक का वह भाग भी सम्मिलित है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव धरातल पर निवास करने वाले प्राणियों तथा वनस्पति पर पड़ता है। रूसी जीवविज्ञानी वर्नाडस्की ने 1919 में जीवमण्डल शब्द का प्रथम बार व्यापक स्तर पर प्रयोग किया। कोल ने समस्त पृथ्वी को एक पारिस्थितिकी तन्त्र के रूप में दर्शाते हुए इस हेतु पारिस्थितिकी मण्डल शब्द का प्रयोग किया। परिभाषा-जीवमण्डल को अनेक विद्वानों ने परिभाषित किया है-
1. “जीवमण्डल शब्द का प्रयोग पृथ्वी के उस भाग के लिए किया जाता है जो कि जीवन के विभिन्न स्वरूपों का आवास है तथा वर्गीकरण की दृष्टि से यह तीन भौतिक मण्डलों स्थलमण्डल, जलमण्डल व वायुमण्डल के अलावा है।“ – डब्ल्यू. जी. मूर
2. “पृथ्वी की सतह अथवा पर्पटी एवं उसका समीपवर्ती वायुमण्डल जिसमें जीव पाये जाते हैं, जीवमण्डल कहलाता है।“– भूगोल परिभाषा कोश
प्रश्न 2. जीवमण्डल के विकास व विस्तार का वर्णन कीजिए।
उत्तर-विकास-ज्ञात अंतरिक्ष में सम्भवतः पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा खगोलीय पिण्ड है, जहाँ स्थल, वायु एवं जल तीनों ही मण्डल पाये जाने से जीवमण्डल का विकास सम्भव हो पाया है। भू-गर्भ में पाये जाने वाले कोयला व खनिज तेल भण्डार भी पुरा-वनस्पति व पुरा-जीवों के ही अवशेष हैं। विस्तार-जीवमण्डल की सीमाएँ अत्यधिक विस्तृत हैं। कई सूक्ष्म जीव तथा बीजाणु वायुमण्डल में हजारों मीटर ऊँचाई तक पहुँच जाते हैं। इसी प्रकार कई सूक्ष्म जीव भू-गर्भ में सैकड़ों मीटर गहराई पर भी देखे गये हैं। जीवन वहीं पाया जाता है, जहाँ इसके लिए अनुकूल प्राकृति प्राकृतिक दशाएँ पायी जाती हैं। इस प्रकार जीवमण्डल की सीमा उन प्राकृतिक तत्त्वों या दशाओं की उपस्थिति पर निर्भर करती है जो सजीवों के उत्पन्न होने तथा जीवित रहने के लिए अर्थात् आवास हेतु अनिवार्य होती है।
प्रश्न 3. जीवमंडल के घटक बताएं।
अथवा
जीवमण्डल के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- सामान्यतः जीवमण्डल से अभिप्राय प्राणी एवं वनस्पति जगत एवं उसके आवास से लिया जाता है, किन्तु जीवमण्डल के संघटन में भौतिक पर्यावरण के सभी तत्त्वों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। पृथ्वी के जीव-जगत तथा पर्यावरण के मध्य पारस्परिक क्रिया-प्रतिक्रिया होती है। इसके अन्तर्गत समस्त जीवधारी तथा भौतिक पर्यावरण दोनों ही आते हैं। भौतिक पर्यावरण में जल, वायु, स्थल तथा सजीव सम्मिलित हैं।
सभी प्रकार के सजीवों की उत्पत्ति, विकास, आवास तथा उनके जीवन-चक्र को प्रभावित करने वाले विभिन्न तत्त्व ही जीवमण्डल के घटक कहलाते हैं। जीवमण्डल के प्रमुख घटक निम्न हैं- (1) वायुमण्डल, (2) जलमण्डल, (3) स्थलमण्डल, (4) सजीव या जीव जगत।
प्रश्न 4. प्राणियों का विसरण या फैलाव को बताइए।
उत्तर- घरातल पर आज जो जीव-जन्तुओं का वितरण पाया जाता है, प्रारम्भ में ऐसा नहीं था। विभिन्न प्रजाति के प्राणियों की उत्पत्ति, क्षेत्र-विशेष तक सीमित थी। फिर विभिन्न प्राणी दुनिया के विभिन्न भागों में कैसे पहुँचे? किसी क्षेत्र-विशेष में प्राणियों का कोई अमुक वर्ग क्यों अनुपस्थित है? इसी प्रकार के अनेक प्रश्नों का उत्तर है, प्राणियों का प्रवसन या स्थानान्तरण। प्राणी विभिन्न विधियों व साधनों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में फैलते हैं। अपने उद्भव स्थल से प्राणियों का अन्य क्षेत्रों में गमन, प्रसरण, प्रवास या स्थानान्तरण जन्तु विसरण कहलाता है।
पादपों के विसरण के समान ही प्राणियों के फैलाव का जैविक विकास की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। यदि संतति बढ़ने के उपरान्त भी किसी जाति के समस्त प्राणी क्षेत्र-विशेष तक ही सीमित रहेंगे तो खाद्य संसाधनों पर दबाव बढ़ जायेगा। समान आवश्यकताओं के कारण जीवन के लिए संघर्ष तेज होगा। परिणामस्वरूप अनेक जीव समाप्त हो जायेंगे। प्रकृति ने प्राणियों को गतिशीलता प्रदान की है, अतः प्रतिकूल परिस्थितियाँ होने पर वे एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में गमन कर सकते हैं। इस प्रकार नवीन क्षेत्रों में अनुकूल दशाएँ मिलने पर प्राणी अपना वास बना लेते हैं एवं प्राणियों का फैलाव होता जाता है। जीवन के लिए संघर्ष से बचने, विभिन्न जातियों का अस्तित्व बनाये रखने, जनसंख्या वृद्धि व भोजन की कमी होने, प्राकृतिक व मानवीय प्रकोपों से बचने इत्यादि कारणों से प्राणियों का फैलाव आवश्यक हो जाता है।
प्रश्न 5. जन्तु विसरण के साधन का वर्णन कीजिए।
उत्तर- पृथ्वी पर विभिन्न जन्तुओं का विसरण या वितरण विभिन्न साधनों एवं विधियों द्वारा होता है, जिनमें प्रमुख निम्न हैं-
स्थल सेतु-दो बड़े स्थलीय भागों या महाद्वीपों को जोड़ने वाले संकरे स्थल उनके मध्य सेतु या संयोजक के रूप में होते हैं। स्थलीय जन्तु इनसे होकर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में चले जाते हैं, किन्तु स्थलडमरू मध्य या स्थल संयोजक जलीय जन्तुओं के गमन के अवरोधक का कार्य करते हैं। आदिकाल में एशिया व उत्तरी अमेरिका महाद्वीप संकीर्ण स्थल सेतु से जुड़े हुए थे इससे होकर बड़ी संख्या में स्थलीय प्राणियों का आगमन और प्रवसन हुआ। आज भी प्राणियों के 150 सजीव वंश दोनों महाद्वीपों में समान मिलते हैं। इनके जीवाश्मों में भी काफी समानता देखने को मिलती है। कालान्तर में यह स्थल सेतु जलमग्न हो गया। बेरिंग जलडमरू मध्य के द्वीप इसके अवशेष हैं। इसी प्रकार का स्थल सेतु उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका को जोड़ता है।
ठीक इसी प्रकार समुद्र के दो विस्तृत क्षेत्रों को जोड़ने वाले संकीर्ण समुद्री विस्तार या जल संयोजी भी जलीय प्राणियों के विसरण में सहायक होते हैं।
- प्राकृक्तिक रॉफ्ट-प्रायः नदियों व समुद्रों में प्रवाहित होने वाले वृक्षों के तनों या लक्कड़, घास, पत्तियों, बेलों व विसर्पी लताओं के उलझे रहने से प्राकृतिक रॉफ्ट का निर्माण हो जाता है। कभी-कभी इनमें मिट्टी के जमाव हो जाने से वनस्पति भी उग आती है। इन तैरते हुए प्राकृतिक रॉफ्ट पर बैठकर स्थलीय जन्तु सैकड़ों किलोमीटर तक की यात्रा करके अन्य स्थानों पर पहुँच जाते हैं। इन पर प्रायः बन्दर, बिल्ली, गिलहरी, सरीसृप आदि निवास करते हैं। प्राकृतिक रॉफ्ट पर यात्रा के दौरान अनेक प्राणी काल- कवलित हो जाते हैं। मुख्य भूमि से द्वीपों तक जन्तुओं का प्रवसन इसी प्रकार से होता है।
- वायु-उड्डयनशील प्राणियों के विसरण में वायु एक मुख्य साधन है। पक्षियों के अलावा पुटीकृत प्रोटोजोन्स, सूक्ष्म जीव, सूक्ष्म स्नेल, कृषि, उड़ने वाले कीट आदि वायु द्वारा सैकड़ों किलोमीटर दूर तक उड़ाकर ले जाये जाते हैं। टिड्डी दल वायु के प्रवाह की दिशा में बढ़ते जाते हैं। मुख्य भूमि से द्वीपों तक प्राणियों के विसरण में वायु द्वारा वाहित सूक्ष्म जीव बड़ी संख्या में सम्मिलित होते हैं। पक्षियों के परों व पंजों से चिपककर भी अनेक सूक्ष्म जीव व उनके अण्डे एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाते हैं।
